बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- हवाई फोटोग्राफी की विधियों की व्याख्या कीजिए एवं वायु फोटोचित्रों के प्रकार बताइये।
उत्तर -
(Methods of Air Photography)
हवाई फोटोग्राफी करने की विधियों के दो भेद होते हैं-
(1) पिन - बिन्दु फोटोग्राफी (Pin-point Photography)
वायुयान से धरातल की किसी एक वस्तु विशेष का ऊर्ध्वाधर या तिर्यक फोटोचित्र खींचना पिन- बिन्दु फोटोग्राफी कहलाता है। यह वस्तु कोई भवन, कारखाना, पुल, हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, बंकर या ऐसा ही कोई अन्य स्थान हो सकता है जिसके एक या दो फोटोचित्र खींचने पर्याप्त होते हैं।
(2) ब्लॉक फोटोग्राफी (Block Photography)
बड़े-बड़े क्षेत्रों के हवाई सर्वेक्षण करने के लिये पिन- बिन्दु फोटोग्राफी के बजाय ब्लॉक फोटोग्राफी विधि प्रयोग में लायी जाती है। इस विधि में दिये हुए क्षेत्रों को समान्तर पट्टियों (parallel strips) में बाँट दिया जाता है। तत्पश्चात् इन पट्टियों के ऊपर सर्पिल प्रतिरूप (serpentine pattern) में वायुयान उड़ाते हुए प्रत्येक पट्टी के अतिव्यापित (overlapping) फोटोचित्र खींचे जाते हैं। किसी पट्टी के दो क्रमागत फोटोचित्रों में 60% तथा दो संलग्न पट्टियों के फोटोचित्रों में 25 से 30% तक अतिव्यापन होता है। इस अतिव्यापन से त्रिविमदर्शी या स्टीरियोस्कोप (stereoscope) यन्त्र से देखने के योग्य फोटोचित्रों के जोड़े प्राप्त हो जाते हैं। इस यन्त्र के नीचे दो क्रमागत एवं अतिव्यापित फोटोचित्र रखकर उन फोटोचित्रों में अंकित धरातल का त्रिविम (three-dimensional) स्वरूप देखा जा सकता है।
ऊपर बतलायी गयी किसे विधि को प्रयोग करने से पूर्व उड़ान के मौसम व फोटोचित्र खींचने के समय को गम्भीरतापूर्वक विचार कर लेना चाहिए। उदाहरणार्थ, पर्णपाती (deciduous) वनों के फोटोचित्र खींचने के लिये बसन्त काल अच्छा रहता है। इसी प्रकार फसल क्षेत्रों के फोटोचित्रों के लिये वह मौसम चुना जाता है जब खेतों में फसल खड़ी हो। फोटोग्राफी में प्रकाश का विशेष ध्यान रखा जाता है अतः वायु फोटोचित्र खींचने के लिये 1 से 2 बजे तक का समय सर्वोत्तम माना जाता है। प्रातः काल या सांयकाल में खींचे गये वायु फोटोचित्रों में धरातलीय विवरणों की लम्बी-लम्बी छायाएँ अंकित हो जाती हैं जिससे फोटोचित्रों में अन्य बहुत से विवरण ओझल हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त उड़ान के समय आकाश मेघरहित एवं स्पष्ट होना चाहिए।
(Types of Air Photographs)
वायु फोटोचित्रों को प्राथमिक तौर पर दो भागों में विभाजित किया जाता है-
(i) तिर्यक् फोटोचित्र ( oblique photograph )
(ii) ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र (vertical photograph )।
वायु फोटोचित्रों के इन भेदों को नीचे समझाया गया है-
(1) तिर्यक फोटोचित्र (Oblique Photograph)
तिर्यक् फोटोचित्र खींचने के लिये वायुयान में रखे गये कैमरे को धरातल की ओर नत (inclined) दिशा में स्थिर करके लक्ष्य करते हैं, जिससे फोटोचित्रों में धरातलीय विवरणों के पार्श्व - दृश्य (side-views ) दिखलायी देते हैं। इस प्रकार ये फोटोचित्र किसी ऊँची मीनार या पर्वत चोटी से खींचे गये फोटोचित्रों के समान होते हैं। फोटोचित्र लेते समय कैमरे को धरातल की ओर कितना झुकाया गया है, इस आधार पर तिर्यक् फोटोचित्रों के निम्नलिखित दो उप-भेद होते हैं-
(1) उच्चकोण तिर्यक् फोटोचित्र (high angle oblique photograph)
(2) अल्पकोण तिर्यक् फोटोचित्र (low angle oblique photograph)।
उच्चकोण तिर्यक् फोटोचित्र में कैमरे को केवल थोड़ा-सा नीचे की ओर झुकाते हैं। इस प्रकार के फोटोचित्रों की मुख्य पहचान यह है कि इनमें विवरणों के पार्श्व-दृश्यों के साथ-साथ क्षितिज (horizon) भी दिखलायी देती है। इसके विपरीत जिन तिर्यक् फोटोचित्रों में क्षितिज दिखलायी नहीं देती है, उन्हें अल्पकोण तिर्यक् फोटोचित्र कहा जाता है। इन फोटोचित्रों में कैमरे को नीचे की ओर इतना अधिक झुका देते हैं कि उसमें क्षितिज का दृश्य अंकित नहीं हो पाता है। यहाँ यह पुनः समझ लेना चाहिए कि 'उच्च' (high) या 'अल्प' (low) शब्दों का अभिप्राय कैमरे के कोण से होता है तथा इन शब्दों का वायुयान की ऊँचाई से कोई सम्बन्ध नहीं है।
(2) ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र (Vertical Photograph)
क्षैतिज उड़ान (level flight) भरते हुए वायुयान में कैमरे को लम्बवत् नीचे की ओर झुकाकर लिये गये वायु फोटोचित्र ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र कहलाते हैं। यद्यपि सिद्धान्त के रूप में ऐसे वायु फोटोचित्र खींचते समय कैमरे का अक्ष धरातल पर ठीक लम्बवत् होना चाहिए परन्तु व्यवहार में सदैव ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होता। अतः यदि कैमरे का अक्ष लम्ब दशा से 2-3 अंश कम या अधिक हो तो भी प्राप्त फोटोचित्र को ऊर्ध्वाधर मान लिया जाता है। इस प्रकार के वायु फोटोचित्र में धरातल का प्लान दृश्य (plan view) आता है, जो आकाश में उड़ते हुए किसी पक्षी के द्वारा लम्बवत् नीचे की ओर देखे गये दृश्य के समान होता है। वायु फोटोचित्रों से मानचित्रण करने के लिये इसी प्रकार के फोटोचित्रों को प्रयोग में लाते हैं।
वायु फोटोचित्रों की उपरोक्त दोनों प्रकारों की परस्पर तुलना करने पर कई बातों पर प्रकाश पड़ता है। तिर्यक् फोटोचित्रों को देखकर विवरणों को सरलतापूर्वक पहचाना जा सकता है क्योंकि उसमें विवरणों की थोड़ी बहुत ऊँचाइयाँ भी दिखलायी देती हैं। इस कारणवश तिर्यक् फोटोचित्रों की व्याख्या करना अपेक्षाकृत सरल होता है तथा फोटोचित्रों में आगे की ओर स्थित भवनों तथा अन्य वस्तुओं की ऊँचाइयों का बहुत-कुछ सही-सही अनुमान लगाया जा सकता है। तिर्यक् फोटोचित्रों की सहायता से वृक्षों के नीचे रखी गई वस्तुओं को भी पहचाना जा सकता है। अतः युद्ध-काल में शत्रु के द्वारा वृक्षों के नीचे छिपाकर रखे गये टैंकों, वाहनों, रसद भण्डारों व शस्त्रागारों का पता लगाने के लिये ये वायु फोटोचित्र बहुत उपयोगी होते हैं। परन्तु इस प्रकार के फोटोचित्र में मृतक क्षेत्र (dead ground) अर्थात् ऊँचे विवरणों के पीछे स्थित न दिखलायी देने वाला क्षेत्र इतना बढ़ जाता है तथा मापनी में इतने बड़े अन्तर आ जाते हैं कि उनसे मानचित्रण करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। इसके विपरीत ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र में समूचा क्षेत्र स्पष्ट दिखलायी देता है तथा दिशा व दूरी दोनों करीब-करीब शुद्ध होती हैं अतः मानचित्रों में ऐसे फोटोचित्रों का सीधा प्रयोग करना सम्भव होता है। ऊर्ध्वाधर फोटोचित्रों की मुख्य समस्या व्याख्या सम्बन्धी कठिनाई है, जो रंगों के अभाव में और अधिक बढ़ जाती है। चूँकि ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र में धरातलीय विवरणों का केवल प्लान अंकित होता है अतः इन्हें देखने से ऐसा प्रतीत होता है, मानों पर्वत, टीले, भवन तथा वृक्ष आदि धरातल के सभी विवरण अपनी ऊँचाइयों को खोकर एकदम सपाट हो गये हैं, जिसके फलस्वरूप जाने-पहचाने स्थान व वस्तुएँ भी फोटोचित्र में अपरिचित सी लगती हैं। इस कारणवश ऊर्ध्वाधर फोटोचित्र की सही-सही व्याख्या करने के लिये विशेष ज्ञान व उपकरणों की आवश्यकता होती है।
इसी प्रकार व्याख्या की दृष्टि से उच्चकोण तिर्यक् फोटोचित्रों की अपेक्षा अल्पकोण तिर्यक् फोटोचित्र अधिक सरल होते हैं। उच्चकोण तिर्यक् फोटोचित्र में कैमरे का अक्ष क्षैतिज तल से लगभग 20 से 30 अंश नीचे की ओर झुका होता है जिससे उसमें क्षितिज तक का दृश्य अंकित हो जाता है। इसके विपरीत अल्पकोण तिर्यक् फोटोचित्र में कैमरे का अक्ष 60 अंश तक झुका हो सकता है। फलतः उसमें उच्चकोण तिर्यक् फोटोचित्र की अपेक्षा बहुत छोटे क्षेत्र का दृश्य अंकित होता है जिसे सरलतापूर्वक पहचाना जा सकता है।
वायु फोटोचित्रों की दो मूल प्रकारों पर आधारित फोटोचित्रों के कुछ अन्य भेद निम्नांकित
(1) ट्रिमेट्रोगन फोटोचित्र ( Trimetrogon photograph ) - ट्रिमेट्रोगन पद्धति में वस्तुतः तीन कैमरे एक-साथ कार्य करते हैं। इनमें मध्यवर्ती कैमरा धरातल का ऊर्ध्वाधर वायु फोटोचित्र खींचता है तथा इधर-उधर के कैमरे क्षितिज तक के तिर्यक् वायु फोटोचित्र खींचते हैं। इस प्रकार ट्रिमेट्रोगन पद्धति में दायीं क्षितिज से बायीं क्षितिज तक का समस्त क्षेत्र अंकित हो जाता है। यद्यपि मानचित्रण के दृष्टिकोण से तिर्यक् फोटोचित्र अधिक उपयोगी नहीं होते तथापि इनसे फोटोचित्रों को अनुस्थापन (orientation) करने में बहुत मदद मिलती है।
(2) अभिसारी फोटोचित्र (Convergent photograph) - अभिसारी पद्धति से फोटोचित्र खींचने के लिये वायुयान में दो कैमरे प्रयोग किये जाते हैं जो एक ही क्षेत्र के दो अलग-अलग तिर्यक् फोटोचित्र एक साथ खींचते हैं। इस प्रकार अभिसारी फोटोग्राफी में किसी क्षेत्र के एक ही समय के अलग-अलग कैमरों के द्वारा लिये गये दो फोटोचित्र प्राप्त हो जाते हैं।
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